भारतीय पौराणिक कथाओं में अप्सराओं का विशेष महत्व रहा है। स्वर्गलोक की ये दिव्य नारियां अपनी सुंदरता, नृत्य-कला और आकर्षण के लिए प्रसिद्ध थीं। इनमें से सबसे प्रसिद्ध अप्सरा थीं उर्वशी। उनकी सुंदरता इतनी अद्भुत थी कि देवता, असुर, गंधर्व और यहां तक कि ऋषि-मुनि भी उनसे प्रभावित हो जाते थे। आज हम उर्वशी और ऋषि-मुनि की एक ऐसी कथा पढ़ेंगे जो मानव भावनाओं, तपस्या की शक्ति और आकर्षण के प्रभाव को दर्शाती है।
उर्वशी का जन्म और महत्व
उर्वशी का जन्म समुद्र मंथन के समय हुआ था। जब देवताओं और दानवों ने अमृत पाने के लिए समुद्र मंथन किया तो अनेक दिव्य रत्न और रत्ननियां प्रकट हुईं। उन्हीं में से उर्वशी नाम की अप्सरा भी प्रकट हुईं। उनका सौंदर्य बेजोड़ था और उनकी कला अतुलनीय। देवताओं ने उन्हें इंद्रलोक में स्थान दिया, जहां वे अपने नृत्य और सौंदर्य से सभी को मोहित करती थीं।
उर्वशी और नारद ऋषि की कथा
कहा जाता है कि एक बार नारद मुनि इंद्रलोक पहुंचे। वहां उन्होंने उर्वशी का नृत्य देखा। उनकी मोहक चाल, सुरीली आवाज़ और अनुपम सौंदर्य को देखकर नारद मुनि क्षणभर के लिए विचलित हो गए। यद्यपि नारद मुनि हमेशा "नारायण-नारायण" जपते थे, लेकिन उर्वशी की छवि उनके मन में बस गई।
नारद मुनि ने मन ही मन सोचा – “यदि मैं इतना विचलित हो सकता हूं तो अन्य साधारण मनुष्य इस मायावी सौंदर्य के आगे कैसे टिक पाएंगे?”। यही सोचकर वे भगवान विष्णु के पास पहुंचे और उन्हें पूरी घटना बताई।
भगवान विष्णु मुस्कुराए और बोले – “हे नारद! यह माया है, जो तपस्वी को भी डिगा सकती है। तुमने अनुभव किया है कि मानव कितना असहाय हो सकता है। इसी से सीख लो कि तपस्या में विवेक और संयम कितना आवश्यक है
उर्वशी और विश्वामित्र ऋषि
एक अन्य कथा में उर्वशी और विश्वामित्र ऋषि का प्रसंग मिलता है। विश्वामित्र महान तपस्वी थे। वे कठोर तपस्या के लिए प्रसिद्ध थे और उनकी साधना से देवलोक तक कांप उठता था।
इंद्र देव को भय हुआ कि यदि विश्वामित्र ने तपस्या पूरी कर ली तो वे स्वर्गलोक का आधिपत्य प्राप्त कर सकते हैं। इसलिए इंद्र ने उर्वशी को भेजा कि वह अपनी सुंदरता और नृत्य से ऋषि की तपस्या भंग कर दें।
उर्वशी अपनी कला और माधुर्य के साथ ऋषि के आश्रम पहुंचीं। उन्होंने गंधर्व गीत गाया, नृत्य किया और अपनी मोहिनी छवि प्रस्तुत की। ऋषि की आंखें अनायास उनकी ओर खिंच गईं। तपस्या भंग होने लगी और कुछ समय तक ऋषि उर्वशी के आकर्षण में बंधे रहे।
लेकिन शीघ्र ही विश्वामित्र को अपनी भूल का अहसास हुआ। उन्होंने कठोर तप से पुनः स्वयं को संभाला और उर्वशी को यह कहकर लौटा दिया कि “तुम्हारी सुंदरता अपार है, लेकिन मेरा मार्ग मोक्ष का है, न कि भोग का।
उर्वशी और पुरुरवा की अमर प्रेमकथा
ऋषियों के अलावा उर्वशी की सबसे प्रसिद्ध कथा राजा पुरुरवा के साथ जुड़ी है। एक बार उर्वशी स्वर्गलोक से पृथ्वी पर आईं और वहां उनकी भेंट राजा पुरुरवा से हुई। दोनों एक-दूसरे पर मोहित हो गए।
उनका प्रेम इतना गहरा था कि उर्वशी कई वर्षों तक राजा पुरुरवा के साथ रहीं। लेकिन स्वर्ग की एक शर्त थी – जब तक पुरुरवा उर्वशी को नग्न अवस्था में अन्य किसी के सामने प्रकट नहीं करेंगे, तब तक वह उनके साथ रहेंगी। एक दिन अचानक यह शर्त भंग हो गई और उर्वशी को स्वर्ग लौटना पड़ा।
राजा पुरुरवा व्याकुल हो उठे। उन्होंने अपने प्रेम को पाने के लिए यज्ञ किए, तपस्या की, लेकिन अंततः उर्वशी स्वर्गलोक की अप्सरा थीं, उन्हें पृथ्वी पर सदैव रहना संभव नहीं था। यह कथा मानव प्रेम और दैवीय सीमा की अद्भुत झलक प्रस्तुत करती है।
कथाओं से मिलने वाली सीख
1. मोह और माया की शक्ति – चाहे वह नारद हों या विश्वामित्र, तपस्वी भी आकर्षण से प्रभावित हो सकते हैं। इससे पता चलता है कि मन पर नियंत्रण सबसे कठिन साधना है।
2. तपस्या का महत्व – जिसने स्वयं को संभाल लिया, वही सच्चा साधक है। विश्वामित्र ने अपनी भूल सुधारकर पुनः तपस्या में लीन होकर यह सिद्ध कर दिया।
3. प्रेम और विरह – उर्वशी और पुरुरवा की कथा यह दर्शाती है कि प्रेम शाश्वत होता है, लेकिन हर संबंध का अपना दायरा और सीमा होती है।
निष्कर्ष
उर्वशी और ऋषि-मुनियों की कहानियां केवल पौराणिक मनोरंजन भर नहीं हैं, बल्कि गहरे जीवन-संदेश भी देती हैं। वे हमें सिखाती हैं कि संयम, आत्म-नियंत्रण और विवेक सबसे बड़ी साधना है। अप्सरा उर्वशी की कथाएं इस बात की भी याद दिलाती हैं कि आकर्षण और प्रेम जीवन का हिस्सा हैं, लेकिन मोक्ष का मार्ग इनसे ऊपर उठकर ही प्राप्त किया जा सकता है।
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