राजा नहुष की पुरातन अनोखी कहानी

नहुष का जन्म एक समझदार और धर्मप्रिय बालक की शुरुआत

बहुत पुरानी बात है, जब धरती पर धर्म का बोलबाला था। उसी समय चंद्रवंश में एक महान राजा का जन्म हुआ जिनका नाम था नहुष। उनके पिता का नाम था राजा ययाति और माँ थीं रानी देवयानी। नहुष बचपन से ही अलग थे पढ़ाई में तेज, स्वभाव से शांत और हमेशा दूसरों की मदद करने वाले छोटे होते ही वे वेद-शास्त्रों को समझने लगे थे। उन्होंने धर्म, न्याय और जीवन के बड़े-बड़े नियम कम उम्र में ही सीख लिए थे। जैसे-जैसे वे बड़े हुए, उनके अंदर की योग्यता और समझदारी ने सबको चौंका दिया लोग कहते थे ये लड़का बड़ा होकर जरूर कुछ बड़ा करेगा। किसी को अंदाजा नहीं था कि ये राजा एक दिन देवताओं का राजा भी बनेगा और फिर सर्प बनकर धरती पर रेंगता फिरेगा।

 स्वर्ग में हलचल जब इंद्र डरकर छिप गए

स्वर्ग में उस समय देवताओं के राजा थे इंद्र। उन्होंने एक बार वृत्रासुर नामक राक्षस को मार डाला। लेकिन वह राक्षस असल में ब्राह्मण कुल से था। इसलिए इंद्र को ब्रह्महत्या का पाप लग गया। डर के मारे इंद्र कहीं छिप गए।

अब स्वर्ग की हालत बिगड़ने लगी। बिना राजा के देवता परेशान हो गए। तब ब्रह्मा और विष्णु ने सोचा कि स्वर्ग के सिंहासन पर कोई योग्य व्यक्ति बैठना चाहिए। बहुत सोचने के बाद, सबकी नज़र एक नाम पर जाकर रुकी — राजा नहुष।


धरती का राजा बना देवताओं का राजा

जब देवताओं ने नहुष को स्वर्ग का राजा बनने का प्रस्ताव दिया, तो पहले उन्होंने विनम्रता से मना कर दिया। लेकिन ब्रह्मा और कई ऋषियों के कहने पर वे तैयार हो गए। अब वे सिर्फ धरती के नहीं, बल्कि तीनों लोकों के राजा बन चुके थे। शुरुआत में उन्होंने बहुत अच्छा काम किया। देवता, ऋषि और गंधर्व सभी उनके फैसलों से खुश थे। लेकिन धीरे-धीरे पद का अहंकार उनके अंदर घर करने लगा। वह खुद को सबसे बड़ा समझने लगे।

जब शक्ति का नशा चढ़ा और विनम्रता खो गई

नहुष को अब यह लगने लगा था कि स्वर्ग का राजा होने का मतलब है – सबको अपने आगे झुकाना। उन्होंने देवताओं से भी झुकने की उम्मीद करने लगे। यही नहीं, उन्होंने एक दिन आदेश दिया कि सप्तर्षि उन्हें पालकी में बैठाकर ले जाएं।

ये बात सुनकर स्वर्ग में सभी हैरान रह गए। लेकिन नहुष का गुस्सा और शक्ति देखकर किसी ने मना नहीं किया। ऋषियों ने उनकी बात मान ली। पर यह फैसला, नहुष के जीवन का सबसे बड़ा मोड़ बन गया।



जब ऋषियों को मारा पैर से – और शाप मिला

जब सप्तर्षि पालकी उठाकर नहुष को ले जा रहे थे, तो उनकी चाल धीमी थी। ऋषि बुज़ुर्ग थे, और उनका चलना भी धीमा था। लेकिन नहुष को गुस्सा आ गया। उन्होंने महर्षि अत्रि को अपने पैर से मार दिया। बस फिर क्या था सभी ऋषि क्रोधित हो गए। उन्होंने कहा तू अब इतना अहंकारी हो गया है कि तपस्वियों पर पैर चला रहा है। अब तू सर्प बनेगा और धरती पर हजारों साल रेंगता रहेगा शाप मिलते ही नहुष का तेज चला गया। वो स्वर्ग से गिर पड़े।

शाप का असर राजा बना अजगर

अब नहुष, जो कभी देवताओं के राजा थे, एक विशाल अजगर (सर्प) बन चुके थे। ना राज्य बचा, ना सम्मान। वे एक गहरे जंगल में जाकर छिप गए और वहाँ अकेले रहने लगे। पर उन्होंने हार नहीं मानी। वे रोज भगवान को याद करते, प्रायश्चित करते और तप करते। उन्हें विश्वास था कि एक दिन कोई आएगा और उन्हें इस शाप से मुक्ति दिलाएगा।


जब महाभारत में भीम से हुई भेंट

सालों बीत गए अब महाभारत का समय था। पांडव वनवास में थे। एक दिन द्रौपदी ने भीम से सौगंधिक फूल लाने की इच्छा जताई। भीम अकेले गंधमादन पर्वत की ओर चल पड़े। रास्ते में एक विशाल अजगर ने उन्हें जकड़ लिया। भीम ने बहुत कोशिश की लेकिन नहीं छूट सके। वो अजगर कोई और नहीं, बल्कि राजा नहुष ही थे। तभी युधिष्ठिर वहां पहुंचे। उन्होंने अजगर से बातचीत शुरू की। नहुष ने युधिष्ठिर से धर्म, सत्य और ज्ञान से जुड़े कई सवाल पूछे। युधिष्ठिर ने बहुत शांत होकर हर सवाल का सही जवाब दिया। उनके जवाबों से नहुष इतना खुश हुए कि उनका शाप टूट गया। वे फिर से इंसान बन गए और मोक्ष को प्राप्त हुए।


इस कहानी से क्या सिखने को मिलता है?

राजा नहुष की यह कहानी सिर्फ एक पुरानी बात नहीं है यह जीवन का गहरा सच है। इससे हम ये बातें सीखते हैं

• अगर आप किसी ऊँचे पद पर हो, तो विनम्रता ज़रूरी है।

• अहंकार चाहे छोटा हो या बड़ा, हमेशा पतन का कारण बनता है।
• ज्ञान, सत्य और धर्म का रास्ता हमेशा आपको ऊँचा उठाता है।
• बड़ों का सम्मान, ऋषि-मुनियों की सेवा, और आत्म-नियंत्रण सबसे जरूरी हैं।

• अगर आप गलती कर भी बैठे हैं, तो पश्चाताप और तपस्या से सुधार संभव है।



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9️⃣ अंत में – क्यों यह कहानी आज भी ज़रूरी है?

आज के समय में जब हर कोई पद, पैसा और पावर के पीछे भाग रहा है, राजा नहुष की कहानी हमें याद दिलाती है कि सिर्फ ऊँचा होना काफी नहीं। अगर आपके अंदर संस्कार और विनम्रता नहीं है, तो आप कुछ भी नहीं।

और अगर गलती हो जाए, तो उसे स्वीकार करना, सीख लेना और आगे बढ़ना – यही सच्चा धर्म है।

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