शिव और पार्वती माता की कहानी सदी की संपूर्ण कथा

पवित्र और अद्भुत घटनाओं में से एक माना जाता है। यह सिर्फ एक विवाह नहीं, बल्कि सृष्टि के संतुलन और धर्म की स्थापना का प्रतीक है। आइए इस दिव्य कथा को विस्तार से समझते हैं—


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पार्वती का तप

पार्वती माता, जिन्हें हिमालय और मैना की पुत्री माना जाता है, जन्म से ही भगवान शिव को अपने पति के रूप में पाने की इच्छा रखती थीं। बचपन से ही उनका मन शिव के ध्यान और भक्ति में रमा रहता था। जब वे बड़ी हुईं, तो उन्होंने कठोर तपस्या आरंभ की। कठोर सर्दी, गर्मी और वर्षा में भी माता ने केवल भगवान शिव को पाने के लिए अन्न-जल त्याग कर तप किया।


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देवताओं की चिंता

उस समय तारकासुर नाम का राक्षस देवताओं के लिए बड़ा संकट बना हुआ था। उसे वरदान था कि उसका वध केवल शिव पुत्र ही कर सकता है। लेकिन भगवान शिव तप में लीन रहते थे और विवाह के विषय में कोई रुचि नहीं दिखाते थे। देवताओं ने मिलकर माता पार्वती को शिव के लिए तप करने की प्रेरणा दी ताकि एक दिव्य पुत्र जन्म ले और तारकासुर का वध कर सके।


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शिव की परीक्षा

भगवान शिव ने पार्वती की भक्ति की परीक्षा लेने के लिए योगी का रूप धारण किया और उनके सामने प्रकट हुए। वे कहने लगे –
“शिव तो भूतों और प्रेतों के स्वामी हैं, उनका कोई घर-परिवार नहीं है। आप जैसी राजकुमारी को उनके पीछे समय नष्ट नहीं करना चाहिए।”

माता पार्वती ने अत्यंत दृढ़ता से उत्तर दिया –
“मेरे लिए शिव ही सब कुछ हैं, वे ही मेरे पति होंगे।”
यह सुनकर शिव जी प्रसन्न हो गए और उन्होंने पार्वती को स्वीकार कर लिया।


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विवाह की तैयारी

भगवान शिव का विवाह एक अद्भुत दृश्य था। बारात में गण, भूत, प्रेत, पिशाच, नाग और योगी शामिल हुए। यह बारात देखकर माता मैना घबरा गईं और सोचने लगीं कि उनकी पुत्री ऐसे वर को कैसे स्वीकार करेगी। लेकिन पार्वती ने माता को समझाया कि शिव का स्वरूप भले ही भयानक लगे, परंतु वे पूरे ब्रह्मांड के स्वामी और करुणा के सागर हैं।


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भव्य विवाह

हिमालय पर्वत पर भगवान शिव और माता पार्वती का विवाह भव्य रूप से संपन्न हुआ। देवता, ऋषि-मुनि और सभी लोकों के प्राणी इस दिव्य मिलन के साक्षी बने। विवाह के समय शिव ने दूल्हे का अलौकिक और सुंदर रूप धारण किया। उन्होंने रत्नों से सुसज्जित वस्त्र पहने और उनके रूप को देखकर सभी मुग्ध हो गए।

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